Sell-Aid Desk24/7- इस साल हिंदी सिनेमा में प्रेम कहानियों की बहार है। हालांकि इनमें सैयारा को छोड़कर कोई भी फिल्म सफल नहीं रही। अब लव इन वियतनाम (Love in Vietnam Review) आई है। शीर्षक से ही स्पष्ट है कि इस बार प्यार वियतनाम में हुआ है। वैसे अगर यह प्रेम कहानी वियतनाम के बजाए हिंदुस्तान के किसी राज्य में भी स्थापित होती तो फर्क नहीं पड़ता। इस फिल्म में लव का अहसास भले ही न हो, लेकिन वियतनाम के मनोरम दृश्य अवश्य लुभाएंगे।
वहां की एयरलाइन के दृश्य बार-बार ध्यान दिलाते हैं कि वियतनाम की बात हो रही हैं। हालांकि, दो अलग संस्कृति के बीच प्यार से होने वाली पारिवारिक या सामाजिक दिक्कतें यहां पर नजर ही नहीं आती। कमजोर पटकथा और स्क्रीनप्ले में ताजगी न होने से यह त्रिकोणीय प्रेम कहानी लुभा नहीं पाती है।
क्या है ‘लव इन वियतनाम’ की कहानी?
पंजाब में रहने वाले मानव (शांतनु माहेश्वरी) के माता-पिता का बचपन में ट्रेन दुर्घटना में निधन हो चुका है। उसके ताऊजी सूरमा सिंह (राज बब्बर) ने ही उसे पाला है। मानव की बचपन की दोस्त सिम्मी (Avneet Kaur) है। दोनों की बचपन में ही शादी तय हो गई थी। मानव को गाने का शौक है, लेकिन ताऊजी चाहते हैं कि वह खेती बाड़ी की बारीकियां सीखे। वह मानव को वियतनाम भेजते हैं। उसके साथ सिम्मी भी जाती है। वहां पर डांसर और पेंटर लिन (खा न्गान) की तस्वीर को देखकर मानव उसका दीवाना हो जाता है। थोड़ी खोजबीन के बाद वह उसे ढूंढ लेता है।
शुरुआत में लिन उस पर अविश्वास करती है। फिर दोनों के बीच प्रेम परवान चढ़ता है। अपनी बहन की शादी के लिए मानव पंजाब आता है। लिन उसे फोन करती है, लेकिन उसके बाद उसका फोन बंद आता है। मानव वापस वियतनाम जाता है। वहां दीवानों की तरह उसे खोजता है, लेकिन वह मिलती नहीं। धीरे-धीरे आठ साल गुजर आते हैं। इस दौरान सिम्मी उसकी देखभाल के लिए आती है। आखिरकार वह सिम्मी से शादी का फैसला लेता है। शादी के समय लिन सामने आती है। लिन के गायब होने की वजह क्या थी? क्या दोनों का मिलन होगा कहानी इस संबंध में हैं।
ज्यादा मसालों ने फिल्म को बनाया बेस्वाद:
राहत शाह काजमी द्वारा लिखित और निर्देशित यह फिल्म मैडोना इन ए फर कोट उपन्यास पर आधारित है। कृतिका रामपाल ने कहानी को अडॉप्ट किया है, लेकिन कहानी उपन्यास से काफी अलग है। इसे बालीवुड की मसाला फिल्म की तरह बनाया गया है। पर यह मसाले स्वादिष्ट नहीं बन पाए हैं। फिल्म पंजाब की पृष्ठभूमि में है। यहां सारे किरदार पंजाबी भाषा में बोलते हैं सिर्फ मानव को छोड़कर। यह अटपटा लगता है। इसी तरह लिन की खोज में मानव का देवदास की तरह दाढ़ी बढ़ाकर घूमना काफी हास्यादपद है।
कहानी आधुनिक दौर में सेट है। लिन होटल में परफॉर्म करती है। उसकी पेंटिंग बनी है, लेकिन फिर भी किसी को उसके बारे में कुछ नहीं पता। यही नहीं सोशल मीडिया पर मानव की दीवानगी का वीडियो और खबरें वायरल होती हैं फिर भी पुलिस से मदद नहीं मांगता। उसकी वजह अस्पष्ट हैं। लिन अपना वीडियो और फोटो मानव को क्यों नहीं लेने देती? इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं है। यही नहीं जब मानव और सिम्मी पहली बार वियतनाम आते हैं तो उनके परिचित व्यवसायी पंकज (गुलशन ग्रोवर) उनके लिए बाल्टी मग लेकर आते हैं, जबकि वह आलीशान अपार्टमेंट में रहने आए है। इस दृश्य की उपयोगिता समझ से परे रहती है। फिल्म का क्लाइमेक्स भी काफी जल्दी में निपटाया गया है।
लिन-मानव की केमिस्ट्री में नहीं दिखा दम:
मानव और लिन के बीच केमिस्ट्री जमती नहीं है। पर हां फिल्म में टेक्नोलॉजी का उपयोग एक दृश्य में शानदार है। मानव को स्थानीय भाषा नहीं आती तो वह गूगल ट्रांसलेटर पर अनुवाद से अपनी बात को दूसरे को समझाता है। भावनाओं को बयां करने में गीत संगीत भी बहुत प्रभावी नहीं बन पाया है। हालांकि, पंजाबी पृष्ठभूमि में गढ़ा गाना बुर्रा बुर्रा जरूर थिरकाता है। सिनेमेटोग्राफर राजेंद्रन नंजन (Rajendiran Nanjan) ने वियतनाम के मनोरम दृश्यों को खूबसूरती से कैमरे से कैद किया है।
शांतनु माहेश्वरी की बतौर सोलो हीरो यह पहली फिल्म है। वह बेहतरीन अभिनेता और डांसर है, लेकिन उन्हें चुस्त पटकथा की आवश्यकता है जो उनकी प्रतिभा का समुचित उपयोग कर सके। अवनीत कौर ने अपने हिस्से का काम बखूबी किया है। उनके किरदार को और बेहतर बनाने की संभावनाएं थीं। वियतनामी अभिनेत्री खा न्गान मासूम लगी हैं, लेकिन उनका पात्र अधकच्चा है। सहयोगी भूमिका में आए राज बब्बर, गुलशन ग्रोवर और बाकी कलाकार साधारण हैं। फरीदा जलाल का पात्र कहानी में कुछ खास जोड़ता नहीं है।











